‘बॉर्डर’ फिल्म में कुरान बचाने वाला सीन याद है, उसके असली हीरो भैरों सिंह नहीं रहे

B Editor

“मेरे चाचा अक्सर जंग की बातें याद करते थे. उन्होंने हमें बताया था कि भारी बमबारी के दौरान जब वो एक मुस्लिम परिवार को निकाल रहे थे, तो उनकी क़ुरान घर में ही छूट गई. क़ुरान की एक प्रति बचाने के लिए वो एक जलते हुए घर के अंदर चले गए थे. जब परिवार ने उन्हें शुक्रिया अदा किया, तो उन्होंने कहा: ‘ये तो मेरा धर्म है.”

‘बॉर्डर’ फ़िल्म में ऐसा एक सीन याद आता है? ये उस सीन को असल में जीने वाले के भतीजे का बयान है. सोमवार, 19 दिसंबर को उनकी मौत हो गई.

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के वेटरन भैरों सिंह राठौड़ ने एम्स जोधपुर में अंतिम सांस ली. भैरों सिंह, युद्ध के दौरान जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट पर तैनात थे. उनकी वीरता के लिए उन्हें 1972 में सेना पदक भी मिला था. ‘बॉर्डर’ फ़िल्म में सुनील शेट्टी का किरदार भैरों सिंह राठौड़ पर ही आधारित था. उनके निधन के बाद BSF ने ट्वीट किया:

“DG BSF और सभी पद 1971 के लोंगेवाला युद्ध के नायक भैरों सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं. BSF उनकी निडर बहादुरी और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण को सलाम करता है.”

परिवार वालों को ‘बॉर्डर’ के मेकर से आपत्ति है
5 दिसंबर, 1971. जंग के दौरान थार रेगिस्तान में बनी लोंगेवाला पोस्ट पर भैरों सिंह राठौड़ BSF की एक छोटी टुकड़ी की कमान संभाल रहे थे. उनके साथ सेना की 23 पंजाब रेजिमेंट के 120 जवानों की कंपनी भी थी. पाकिस्तानी सैनिकों की ब्रिगेड और टैंक रेजिमेंट ने हमला कर दिया. कोई तत्काल सपोर्ट मुमकिन नहीं था, तो सैनिकों को पीछे हटने के लिए कहा गया. वो नहीं माने और 125-26 जवानों ने 2000 पाकिस्तान सैनिकों और टैंक रेजिमेंट की पूरी कंपनी को लोंगेवाला पोस्ट पर रोक दिया था.

‘बॉर्डर’ फ़िल्म इसी वाक़ये पर बनी है. सुनील शेट्टी के किरदार भैरों सिंह पर ही आधारित था. फ़िल्म में उनका नाम भी भैरों सिंह ही था और वो BSF में थे. फ़िल्म के अंत की तरफ़ एक सीन है, जिसमें भैरों सिंह एक माइन ले कर टैंक की तरफ़ दौड़ता है और टैंक को ब्लास्ट कर देता है. एपिक सीन है और लोगों ने भैरों सिंह के किरदार को इस सीन की वजह से बहुत याद भी किया. लेकिन, परिवार को उनके चित्रण पर कुछ आपत्तियां हैं.

भैरों सिंह राठौड़ के बेटे सवाई सिंह ने मीडिया से कहा,

“मेरे पिता अक्सर इस बात पर का अफ़सोस करते थे कि फ़िल्म में उनके पात्र को युद्ध में मार दिया. उनकी आख़िरी इच्छा थी कि वो सुनील शेट्टी से मिलें. हमने मिलवाने की कोशिश की, लेकिन उनकी इच्छा अधूरी रह गई.”

उनके रिश्तेदारों ने ये भी बताया, फ़िल्म में दिखाया है कि युद्ध के समय तक सिंह की शादी हो चुकी थी. लेकिन असल में उन्होंने युद्ध के बाद शादी की थी.

मिल तो न सके, लेकिन सुनील शेट्टी ने भैरों सिंह के निधन पर ट्वीट किया. लिखा, “नाईक भैरोंं सिंह जी, आपको शांति मिले. परिवार के लिए हार्दिक संवेदनाएं.”

राठौड़ के भतीजे अरुण सिंह ने मीडिया को बताया,

“वो यहीं के लोकल थे. इसी वजह से वो रेगिस्तानी इलाक़े और टोपोग्राफ़ी को अच्छे से जानते थे. जंग के दौरान उन्होंने 23 पंजाब रेजिमेंट को बहुत ज़रूरी जानकारियां दीं. लड़ाई के दौरान भी उन्होंने हल्की मशीन गन से पाकिस्तानी सेना को भारी नुक़सान पहुंचाया.

आज की तारीख़ तक वो हमेशा हमारे गांव के युवाओं को सेना में जाने के लिए कहते थे. प्रोत्साहित करते थे. उन्हें फ़िटनेस और फिज़िकल टेस्ट क्लियर की तैयारी भी करवाते थे.”

1987 में भैरों सिंह राठौर बतौर नाइक सेवानिवृत्त हुए.

BSF के एक प्रवक्ता ने बताया कि अंतिम दर्शन के लिए राठौड़ के पार्थिव शरीर को BSF मुख्यालय ले जाया गया, जहां BSF DG पंकज कुमार सिंह, आर्मी चीफ़ जनरल मनोज पांडे, जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पुष्प अर्पित किए. इसके बाद पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार उनके गांव में ही किया जाएगा.

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