भारत में बन रहा दुनिया का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे। 80 लाख टन सीमेंट और 50 हावड़ा ब्रिज के बराबर स्टील का होगा इस्तेमाल।

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दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे को आठ लेन का बनाया जा रहा है। भविष्य में चार लेन बढ़ाकर इसे 12 लेन तक करने की उम्मीद है। इसके लिए 21 मीटर चौड़ाई की मीडियन बनाई जा रही है। ट्रैफिक का दबाव बढ़ते ही मीडियन को घटाकर एक्सप्रेस-वे को आसानी से चौड़ा किया जा सकेगा। यह एशिया का पहला ऐसा हाईवे हैं जिसके निर्माण में वन्यजीवों के लिए ग्रीन ओवरपास की सुविधा दी जाएगी।

ये है एक्सप्रेस वे की खासियत।
इसके बनने के बाद दिल्ली से मुंबई का सफर 12 घंटे में पूरा हो सकेगा। अभी इन दोनों शहरों के बीच यात्रा में 24 घंटे लगते हैं। इस पर 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां फर्राटा भरेंगी। एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरा होने के बाद फ्यूल की खपत में 32 करोड़ लीटर की कमी भी आएगी। साथ ही कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में 85 करोड़ किलोग्राम की कमी आएगी जो कि चार करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है।

80 लाख टन सीमेंट का होगा इस्तेमाल।

यह एशिया का पहला और दुनिया का दूसरा एक्सप्रेसवे है जहां वन्य जीवों के लिए ओवरपास की सुविधा दी गई है। इसके निर्माण में 12 लाख टन स्टील का इस्तेमाल होगा जो 50 हावड़ा ब्रिज के बराबर है। साथ ही इसमें 35 करोड़ क्यूबिक मीटर मिट्टी और 80 लाख टन सीमेंट का इस्तेमाल होगा। यह सीमेंट देश की सालाना उत्पादन क्षमता के दो फीसदी के बराबर है। इसके निर्माण पर करीब एक लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे को आठ लेन का बनाया जा रहा है। भविष्य में चार लेन बढ़ाकर इसे 12 लेन तक करने की उम्मीद है। इसके लिए 21 मीटर चौड़ाई की मीडियन बनाई जा रही है। ट्रैफिक का दबाव बढ़ते ही मीडियन को घटाकर एक्सप्रेस-वे को आसानी से चौड़ा किया जा सकेगा। यह एशिया का पहला ऐसा हाईवे हैं जिसके निर्माण में वन्यजीवों के लिए ग्रीन ओवरपास की सुविधा दी जाएगी।

ये है एक्सप्रेस वे की खासियत।

इसके बनने के बाद दिल्ली से मुंबई का सफर 12 घंटे में पूरा हो सकेगा। अभी इन दोनों शहरों के बीच यात्रा में 24 घंटे लगते हैं। इस पर 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां फर्राटा भरेंगी। एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरा होने के बाद फ्यूल की खपत में 32 करोड़ लीटर की कमी भी आएगी। साथ ही कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में 85 करोड़ किलोग्राम की कमी आएगी जो कि चार करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है।

80 लाख टन सीमेंट का होगा इस्तेमाल।

यह एशिया का पहला और दुनिया का दूसरा एक्सप्रेसवे है जहां वन्य जीवों के लिए ओवरपास की सुविधा दी गई है। इसके निर्माण में 12 लाख टन स्टील का इस्तेमाल होगा जो 50 हावड़ा ब्रिज के बराबर है। साथ ही इसमें 35 करोड़ क्यूबिक मीटर मिट्टी और 80 लाख टन सीमेंट का इस्तेमाल होगा। यह सीमेंट देश की सालाना उत्पादन क्षमता के दो फीसदी के बराबर है। इसके निर्माण पर करीब एक लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है।

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