fbpx

विकलांग झुग्गी मे रहने वाली बच्ची जिसे सौतेली मां ने घर से बाहर निकाला, मेहनत से पढ़ाई कर बनी आईएएस अधिकारी

B Editor

ज्यादातर असफल लोग परिस्थितयों का रोना रोते हैं. जो लोग परिवार के आर्थिक स्तर और खराब हालात का रोना रोते है, फिर चाहे वो सफल हो या असफल उन्हें दिल्ली की इस लड़की के जीवन के बारे में जरूर जानना चाहिए. इस लड़की का नाम उम्मुल खेर है. इनसे जितनी प्रेरणा ली जाए वो कम है. जब उनका जन्म हुआ, तब वो विकलांग थी. दिल्ली की छोटी सी झुग्गी में रहती थी.

इन सब के बावजूद भी उन्होंने अपना आत्मविश्वास, मेहनत और लगन को खत्म नहीं होने दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि वो आईएएस अधिकारी बन गई. ऐसी लड़कियां समाज के लिए एक नजीर बन जाती है. आइए जानते हैं आईएएस अधिकारी उम्मुल खेर की जीवन के संघर्ष के बारे में

कौन हैं आईएएस उम्मुल खेर
राजस्थान की रहने वाली उम्मुल खेर ( know about ias Ummul kher) पारिवारिक कारणों से दिल्ली के निजामुद्दीन में आकर रहने लगी थी. बचपन से ही उनके परिवार की आर्थिक परिस्थितयां अच्छी नहीं थी. यही वजह थी कि उनका बचपन निजामुद्दीन की झुग्गियों में बीता. उनके पिता सड़क के किनारे मूंगफली बेचा करते थे. 2001 में उनके परिवार पर समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ा. जिन झुग्गियों में उम्मुल अपने परिवार के साथ रहती थी वो गिर गईं. इसके बाद उनका परिवार त्रिलोकपुरी इलाके में किराए पर रहने चले गए.

उम्मुल उस समय बहुत छोटी थी. वो 7वीं कक्षा की छात्रा थी. आर्थिक कमी के चलते उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना चालू कर दिया. ट्यूशन से उन्हें महीने में 50 से 60 रुपए तक मिल जाते थे. उम्मुल के विकलांग होने की वजह से परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि वो आगे पढ़ाई करें. ऐसे में उम्मुल को ट्यूशन से मिले रुपयों ने काफी मदद की. इन रुपयों से उनकी आगे की पढ़ाई हो सकी.

हड्डियों की बीमारी से जूझ रही थीं उम्मुल
उम्मुल बचपन से ही हड्डियों की बीमारी से जूझ रही थी. उन्हें बोन फ्रजाइल डिसीज़ थी. इस बीमारी में हड्डियां बहुत नाजुक हो जाती है. अगर कभी शरीर में गिरने की वजह से दबाव या चोट पड़ता है, तो हड्डियां सहन नहीं कर पाती हैं. उम्मुल के शरीर के साथ इस बीमारी ने भी अपना असर दिखाया. 28 साल की उम्र तक उम्मुल के शरीर में 15 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी हो चुकी थी.

बचपन में ही हुई मां की मौत
उम्मुल की जिंदगी बिलकुल आसान नहीं थी. जब वो स्कूल में थीं, उस दौरान किसी बीमारी के कारण उनकी मां की मौत हो गई . उनकी मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली. उम्मुल के अनुसार उनकी नई मां उनको ज्यादा पसंद नहीं करती थी. सौतेली मां को उनका पढ़ना-लिखना बिलकुल पसंद नहीं था. हालांकि परिवार के लोग भी यही चाहते थे कि उम्मुल अपनी पढ़ाई छोड़ दें. उनकी पढ़ाई छुड़वाने के लिए परिवार ने खूब कोशिश की.

लेकिन कहते हैं ना कुछ करने की चाह जिसे होती है उसे कोई हरा नहीं सकता है. उन्होंने पढ़ाई छोड़ने से बेहतर घर छोड़ना समझा. उन्होंने तय किया कि त्रिलोकपुरी में एक छोटा सा कमरा किराये पर लेकर वो परिवार से दूर रहेंगी. जिस दौरान उन्होंने परिवार (ias Ummul kher family) को छोड़ा, उस दौरान वो 9वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहीं थीं. इस उम्र में वो बच्चों को कोचिंग पढ़ाती थी. कोचिंग से जो पैसा मिलता था, उससे वो अपना खर्च चलाती थी.

अपना खर्च चलाने के लिए उन्हें रोजाना 8-12 घंटों तक कोचिंग पढ़ाना पड़ता था. इसके बाद वो खुद की पढ़ाई भी करती थी. ये संघर्ष के दिन याद कर उम्मुल की आंखें नम हो जाती है.

विकलांग स्कूल में हुई Ummul kher की शुरुआती पढ़ाई
उम्मुल की शुरुआती पढ़ाई ( ias Ummul kher education) विकलांग स्कूल में ही हुई। उन्होंने पांचवी क्लास से लेकर आठवीं क्लास तक दिल्ली के कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढ़ाई की. मेहनती एवं लगनशील होने के कारण वो अन्य बच्चों की अपेक्षा पढ़ाई लिखाई में ज्यादा बेहतर साबित होती थीं. आठवीं कक्षा के बाद उन्होंने स्कॉलरशिप की मदद से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।

10वीं में उन्होंने 91 फीसद अंक हासिल किए. वही, 12वीं की पढ़ाई में 90 फीसद अंक हासिल कर यह साबित कर दिया की मेहनत और लगन से सफलता पाई जा सकती है। उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी के भाग से पूरी की। जैसे-जैसे उम्मुल अपनी पढ़ाई की सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे उनके चर्चे होते जा रहे थे।उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एम.ए की पढ़ाई पूरी की. और यहीं से एमफिल का फॉर्म भी डाल दिया।

साल 2014 में उन्हें जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयनित किया गया। भारत के 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सिलेक्ट हुए थे और उनमें चौथी भारतीय उम्मुल थी. एमफिल पास करने के बाद उन्होंने जेआरएफ क्लियर किया. इस परीक्षा के बाद से उन्हें आर्थिक तंगी की समस्या खत्म हो गई.

420वीं रैंक हासिल कर बनी आईएएस अधिकारी
उन्होंने जेआरएफ की तैयारी के साथ ही यूपीएससी की तैयारी करना शुरू कर दिया. जेआरएफ से जो पैसे उनको मिलते उन पैसों से वो अपनी पढ़ाई पूरी करने लगे। इसका अससर ये हुआ कि उनका पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही समर्पित हो गया. वो पढ़ाई में जितना अच्छी थी, उतना मेहनती भी थी. उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा में सफलता हासिल कर ली. उन्हें यूपीएससी की इस कठिन परीक्षा (ias Ummul kher rank) में 420वीं रैंक मिल गए. इसके साथ ही वह आईएएस अधिकारी बन गए.

एक साक्षात्कार में उम्मुल ने बताया था कि उनके साथ उनके परिवार ने जैसा भी व्यवहार किया वो उनकी गलती थी। शायद परिस्थितियों के कारण उनके पिता ने लड़कियों को पढ़ाने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई और उनकी मां ने भी उनकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

वो कहती हैं कि उन्होंने अपने परिवार को माफ कर दिया है और उनके परिवार के साथ संबंध भी अच्छे हो गए हैैं। उम्मुल बड़ा भाई राजस्थान में रह रहे है. वो अपने माता-पिता का सम्मान करती हैं और वह उनको हर तरह का आराम देना चाहती हैं. उनकी सफलता सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो संघर्ष असफलता और परिस्थितियों के कारण हार मान लेते हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचने का हौसला भी जुटा नहीं पाते हैंं

Leave a comment