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गर्भवती महिलाओं को “गोद भरे” की रस्म क्यों की जाती है? इसके पीछे की असली वजह शायद ज्यादातर महिलाओं को पता भी न हो

घर में बच्चे के आने की खबर से पूरे परिवार में उत्साह का माहौल है और लोग मेहमान के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।इस बीच युवती को अपने और अपने बच्चे के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।इतना ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म में बच्चे के जन्म से जुड़ी कुछ परंपराएं भी हैं, जिनमें से एक है “छेद भरने” की प्रथा।यह रिवाज गर्भावस्था के सातवें महीने के दौरान किया जाता है।जहां लोग गर्भवती महिला के साथ-साथ अजन्मे बच्चे को आशीर्वाद देते हैं।

यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि जो बच्चा इस रिवाज के साथ आता है उसके कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं।इस प्रथा के पीछे एक मनोवैज्ञानिक तर्क भी है।जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे.तो आइए आपको इस लेख में बताते हैं कि इस प्रथा के क्या फायदे हैं।
बच्चे को उच्च प्रोटीन आहार की आवश्यकता होती है

खोलो भरने की प्रथा में गर्भवती महिला के खोलो में मेवे भरवाए जाते हैं।जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक भ्रूण को उच्च प्रोटीन आहार की आवश्यकता होती है और इसके लिए नट्स सबसे अच्छे होते हैं।क्योंकि इससे बच्चे को हर तरह के पोषक तत्व मिलते हैं।इसका सेवन गर्भवती महिलाओं को करना चाहिए।
फल और मेवे बच्चे को स्वस्थ रखते हैं

सूखे मेवों के साथ-साथ फल भी बहुत पौष्टिक होते हैं, इसीलिए इस रिवाज में गर्भवती महिलाओं को फल भी दिए जाते हैं।ताकि महिला इसका सेवन करे और मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें।

विशेष पूजा
खोलो भरने की रस्म में बच्चे की विशेष पूजा की जाती है, ताकि सभी दोष दूर हो जाएं और बच्चे को कोई खतरा न हो।इस पूजा के माध्यम से बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना की जाती है।इस प्रकार की पूजा से गर्भस्थ शिशु को सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है।
प्रसव केदौरान दर्द कम होता है

फल और मेवे गर्भवती महिला और बच्चे को ताकत देते हैं और साथ ही अपने तैलीय गुणों के कारण प्रसव के समय बच्चे को राहत देते हैं और बच्चे को पूरी तरह स्वस्थ रखते हैं।
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