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आज़ादी के पहले खुली एक छोटी दुकान आज हल्दीराम ब्रांड बनके पूरे भारत को नमकीन का स्वाद चखा रही

अच्छा खाना तो सभी को पसंद होता है और परिवार, दोस्तों या पड़ोसियों के साथ बातचीत करते हुए नमकीन, सेव्, आलू भुजिया या चकरी परोस दी जाये, तो क्या बात है ज़नाब, मज़ा ही आ जाना है। इस पोस्ट को पढ़कर आज आके मुँह में पानी आ जाना है।

अगर आपको कोई बाज़ार से आलू भुजिया (Aloo Bhujia) लाने बोल दे, तो आप पक्का हल्दीराम आलू भुजिया का ही पैकेट लेकर आएंगे। हल्दीराम के प्रोडक्ट्स (Haldiram Products) लगभग हर घर में खाये जाते हैं। किसी भी पार्टी में नाश्ते के तौर पर अक्सर नमकीन हल्दीराम वाला ही होता है। जाम से जाम टकराने वालो को चखने के टूर पर भी हल्दीराम के ही प्रोडक्ट पसंद आते हैं।

सबसे हैरान करने वाली बात यह है की आज़ादी से पहले हल्दीराम की शुरुआत हुई थी, वो भी एक एक छोटी सी दुकान ज़रिये। फिर आज़ादी के बाद यह कैसे आज़ाद भारत का नंबर एक ब्रांड (Number One Brand) बन गया, आज यह सफलता की कहानी आपके सामने है।

भुजिया नमकीन बनाकर बेचना शुरू किया
राजस्थान में बीकानेर के का रहने वाला एक बनिया परिवार बहुत ही कम आमदनी से किसी तरह परिवार का पालन पोषण कर पा रहा था। आज़ादी के लगभग 50-60 साल पहले अपने परिवार को पालने के लिए एक शख्स संघर्ष कर रहा था। तनसुखदास के बेटे भीखाराम अग्रवाल (Bhikharam Agarwal) नए काम की तलाश में थे।
उन्होंने अपने और अपने बेटे चांदमल के नाम को एक साथ मिलकर ‘भीखाराम चांदमल’ नामक एक दुकान खोली। उस समय बीकानेर में भुजिया नमकीन बनाकर बेचना शुरू किया, जो लोगो को बहुत पसंद आया। भुजिया नमकीन का स्वाद वहां के लोगो की जीभ में चढ़ चुका था।

भीखाराम ने भुजिया बनाना अपनी बहन ‘बीखी बाई’ से सीखा था। दिलचस्प बात यह है की उनकी बहन ने अपने ससुराल से भुजिया बनाना सीखा था। बहन जब भी अपने मायके आती थी, तो भुजिया का स्टॉक साथ ले आती थी। सभी चाव से खाते थे।

पहले हल्दीराम ने एक बच्चे के रूप में जन्म लिया
भीखाराम ने भी भुजिया बनाकर अपनी दुकान में बेचना शुरू कर किय और उनकी भुजिया चल निकली थी। भुजिया बेचकर परिवार चल रहा था। फिर सन् 1908 में भीखाराम के घर उनके पोते का जन्म हुआ, जिनका नाम गंगा बिशन अग्रवाल (Ganga Bhisen Agarwal) था। उनकी माँ उन्हें प्यार से हल्दीराम (Haldiram) कह कर बुलाती थी। हल्दीराम ने शुरू से ही घर में नमकीन बनते देखा और खूब खाया भी।
अब हल्दीराम (Ganga Bhisen Agarwal aka Haldiram) भी दुकान के कामों में हाथ बटाने लगे। वे बड़े मेहनत करने वाले बन्दे थे। उन्होंने स्वादिष्ट भुजिया बनाना भी सीख लिया था। उस वक़्त केवल 11 साल की उम्र में हल्दीराम की शादी चंपा देवी के साथ हो गई। शादी के बाद हल्दीराम ने अपने दादा की भुजिया नमकीन (Bhujia Namkeen) की दुकान पर बैठना शुरू कर दिया था।

उनकी भुजिया अन्न दुकानों और मार्किट में बिकने वाली भुजिया से कुछ अलग तो नहीं थी। अब वे भुजिया के बिजनेस (Bhujia Business) को बढ़ाना का मन बनाने लगे। ऐसे में हल्दीराम ने अपनी भुजिया के स्वाद को बढ़ाने के लिए कुछ चेंज करने पर विचार किया। उसमें उन्होंने मोठ की मात्रा को बढ़ाया।

हल्दीराम ने परिवार से अलग होकर कम शुरू किया
उस भुजिया का स्वाद उनके ग्राहकों को बहुत पसंद आया। उनकी भुजिया बाज़ार में बिकने वाली भुजिया से काफी अलग और टेस्टी थी। कुछ फॅमिली प्रॉब्लम के चलते हल्दीराम ने बड़े परिवार से अलग होने का फैसला किया। ऐसे में उन्हें पारिवारिक व्यापार से कुछ नहीं मिला था।

हल्दीराम ने अपने बड़े परिवार से अलग होने के बाद बीकानेर में साल 1937 में एक छोटी सी नाश्ते की दुकान शुरू की। जहां बाद में उन्होंने भुजिया बेचना भी चालु किया। आखिर वे भुजिया एक्सपर्ट जो थे। कहा जाता है कि हल्दीराम हमेशा अपनी भुजिया का स्वाद बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ एक्सपेरिमेंट किया करते थे।

अब हल्दीराम ने एक नया बदलाव करते हुए एक दम पतली भुजिया बना दी। यह नई पतली भुजिया बहुत ही चटपटी और क्रिस्पी थी। इस तरह की भुजिया अब तक मार्केट में नहीं आई थी। हल्दीराम की इस पतली टेस्टी भुजिया (Small Bhujia) का स्वाद लोगो को काफी पसंद आया। उनकी चटपटी और स्वाद से भरपूर भुजिया खरीदने के लिए दुकान के सामने लाइन लगने लगी। पूरे शहर में उनकी दुकान ‘भुजिया वाला’ (Bhujia wala) के नाम से मशहूर हो गई। कुछ समय बाद उन्होंने अपनी दुकान का नाम अपने नाम पर ‘हल्दीराम’ रख दिया।

हल्दीराम का व्यापार बढ़ता गया
मार्किट में कदम रख चुके हल्दीराम का व्यापार बढ़ता गया। भुजिया के अलावा कई प्रकार की अन्न नमकीन बनने लगी। अब उनके हल्दीराम प्रोडक्ट्स की मांग भी बढ़ने लगी। इस सबके बाद भी हल्दीराम अभी भी अपनी भुजिया में बदलाव कर रहे थे। नए चेंज को नाम दिया गया ‘डूंगर सेव’। उन्होंने अपनी इस नई भुजिया का नाम बीकानेर के फेमस महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर रखा था।

हल्दीराम अपने व्यापार को अब पूरे देश में फैलाना चाहते थे। यह वक़्त था साल 1941 का। उन्होंने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों की मदत से कोलकाता में एक दुकान खोल दी। अब हल्दीराम की एक ब्रांच कोलकाता में भी थी। आगे उनके पोते शिव कुमार और मनोहर ने उनके बिजनेस को संभाला। साल 1970 में पहला स्टोर नागपुर में खोला गया था। उन्होंने कारोबार को पहले नागपुर और फिर दिल्ली तक पहुंचाया।

हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की डिमांड लगातार बढ़ी
फिर साल 1982 में देश की राजधानी दिल्ली में दूसरा स्टोर खोला गया। दोनों जगहों पर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स स्थापित किये। इसके बाद पूरे देश में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स जाने लगे और फेमस हो गए। अब हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की डिमांड विदेशों में भी होने लगी। ऐसे में यह स्वाद देश के अलावा विदेशों में भी फैला दिया गया।

साल 2003 में हल्दीराम ने अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट शुरू कर दिया था। आज लगभग 80 देशों में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स का निर्यात किया जाता है। फिर साल 2015 में अमेरिका ने हल्दीराम के निर्यात पर रोक लगा दी थी। उसका मानना था कि हल्दीराम अपने प्रोडक्ट्स में कीटनाशक का इस्तेमाल करता है। फिर भी हल्दीराम कंपनी के व्यापर पर कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा। अभी भी पूरे विश्व में उसके प्रोडक्ट्स बिक रहे हैं।

कंपनी पूरे देश में 3 भाग बनाकर काम करती है
हल्दीराम कंपनी अभी पूरे देश में 3 भाग बनाकर काम करती है। दक्षिण और पूर्वी भारत का व्यापार कोलकाता स्थित ‘हल्दीराम भुजियावाला’ के पास है। पश्चिमी भारत का व्यापार नागपुर में ‘हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल’ के पास है और उत्तरी भारत का व्यापार दिल्ली में ‘हल्दीराम स्नैक्स एंड एथनिक फूड्स’ के पास है। इस मैनेजमेंट के साथ बे पूरे भारत में अपना दबदबा बनाये हुए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2013-14 के बीच हल्दीराम का दिल्ली वाली हल्दीराम कंपनी का रेवेन्यू 2100 करोड़ रूपये और नागपुर वाली कंपनी का साल का रेवेन्यू 1225 करोड़ और नागपुर वाली का रेवेन्यू 210 करोड़ रुपए था। वहीं साल 2019 में हल्दीराम का सालाना रेवेन्यू (Haldiram Company Revenue) 7,130 करोड़ रुपए बताया गया था। हल्दीराम ने स्वाद और कमाई के शिखर को छुआ ही नहीं, बल्कि पैठ भी बना ली है।

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