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बांस की खेती हरा सोना है, कई लोग करोड़पति बने, अब सरकार भी बांस पर सब्सिडी दे रही है

B Editor

बॉस एक प्रकार का पौधा है, इसका वैज्ञानिक नाम बैम्‍बूसा वुलगारिस (Bambusa vulgaris) है। इसे बांस के पौधे के नाम से जाना जाता हैें। बांस के पौधे को हरा सोना के नाम की संज्ञा दी गई है। ऐसा माना जाता है कि बंजर से बंजर जमीन को इस बांस की खेती (Bans Ki Kheti) से सही बनाया जा सकता हैं।

दूसरी ओर इसकी खेती से एक बढिया लाभ अर्जित किया जा सकता है। इस स्थिति में सरकार गर्वमेंट ने वर्तमान में बांस की खेती पर पचास प्रतिशत सब्सिडी मदद देेेने की घोषणा की हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने बांस की खेती को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए है। खेती से जुड़े जानकर इसे किसानों के लिए ‘हरा सोना’ (Green Gold) बता रहे हैं। वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल ने जानकारी देते हुये बताया कि बांस की खेती अन्य फसलों की तुलना में सुरक्षित और अधिक लाभ देने वाली है।

बांस की फसल की खासियत यह भी है कि यह किसी भी ऋतू में खराब नहीं होता। बांस की फसल इस नजरिया से भी लाभदायक है कि इसे एक बार लगाने के बाद कई साल तक इसका उत्पादन प्राप्त होता है।

बांस की खेती (Bamboo Farming) में कम खर्च होने के साथ मेहनत भी बहुत कम लगती है। इसकी खेती पर किसानों को प्रति पौधा 120 रुपये की सहायता प्राप्त होगी। तीन साल में औसतन 240 रुपये प्रति प्लांट की लागत आती है। इसका अर्थ है, आधा पैसा सरकार देगी।

जानकारों के मुताबिक एक हेक्टेयर में बांस के 625 पौधे लगाए जा सकते हैं। किसान सरकारी नर्सरी से बांस के पौधे को खरीदा जा सकता हैं। बांस की फसल पर्यावरण के लिए लाभकारी, हरियाली बढ़ाने के साथ तापमान संतुलित बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान पहले ही कह चुके हैं कि कृषि के क्षेत्र में बांस मिशन को लागू कर खेती को मुनाफे का काम बनाया जाएगा। इसकी खेती फसल विविधीकरण में भी खास भूमिका निभाएगी। उन्होंने अधिकारियों से कहा है कि वे किसानों को बांस की खेती के लिए प्रोत्साहित करें।

Money Presentation Photoराजशेखर पाटिल जो कि महाराष्‍ट्र के ओरमनाबाद ग्राम में निवास करते हैं, वे इसका जीता जागता उदाहरण हैं। वे अपने दो से तीन वर्ष की अवधि के प्रयास से अपनी खेती की जमीन के चारो ओर 40 हजार पौधे लगा चुके हैं और उनके 2 से 3 साल की कड़ी मेहनत से 40 हजार बांस से 10 लाख बांस के और पौधे का विकास हो गया।

इतने कम समय मे ही लोग उनसे बांस का खरीदने लगे। प्रथम वर्ष में उन्‍होनें लगभग एक लाख की कीमत के बांस के पौधे बाजार में बेचा। इस प्रकार उन्‍हें आने वालें 2 वर्षों में 20 लाख का फायदा हुआ। अपनी मेहनत और लगन के बल पर वे आगे बढ़ते गये और उन्होंने खुद की 30 एकड़ जमीन के आस पास बास उपजाना शुरू कर दिये है। अब हालिया समय में राज शेखर पाटिल 54 एकड़ जमीन के स्‍वामी हो गए हैं।

राष्‍ट्रीय बांस मिशन (NBM) का प्रारंभ 2006-2007 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया था। केंद्र की इस योजना से बेरोजगार युवा और किसानों को बांस की कृषि पर उन्‍हें 50 फीसदी की सब्सिडी के रूप में मदद दी जाएगी। इसी प्रकार जो निम्‍न वर्ग के किसान हैं उन्‍हें इस खेती पर 120 रूपयें की सब्सिडी का भुगतान किया जाएगा। इस दौरान बांस के पौधे वन विभाग द्वारा प्रदान किए जाएगें।

कब करें इसकी खेती
बांस के पौधे को जुलाई माह में उगना होता हैं। दो माह में ही बांस का पौधा अपनी प्रगति कर लेता हैें, लेकिन इसकी कॉंट-छॉट इसकी उपयोगिता पर आश्रित हैं। अगर हमे टोकीनी का निर्माण करने वाले बांस की अवाशयकता हो, तो 3-4 वर्ष पहले की फसल से कार्य हो जाता हैं।

अगर बांस का ठोस रूप चाहिए, तो हमें करीब 6 वर्ष पहले के बांस की अवाश्‍यकता होती हैं। बांस के पौधे के कॉट-छॉट का आरम्‍भ माह अक्‍टूबर से दिसम्‍बर तक का हैं। अब इस तरह की खेती में भी बहुत मुनाफा होने लगा है। कुछ कंपनी बम्बू हाउस और फर्नीचर भी बना रही है, जिनकी बहुत डिमांड देखी गई है।

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